पाठ की तीसरी साखी- जिसकी एक पंक्ति है मनुवां तो चहुं दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’, के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?

मनुवां तो चहुं दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं के द्वारा कबीर कहना चाहते है कि ईश्वर की भक्ति करते वक्त अगर आपका मन दस जगह भटक रहा है तो वह सच्ची भक्ति नहीं है। कुछ लोग हाथ में माला लेकर राम का नाम जप रहे होते हैं, लेकिन अगर उनका मन एकाग्र नहीं है तो इस प्रकार ईश्वर का स्मरण करने का कोई महत्त्व नहीं है|


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